A Review Of Hindi poetry

व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,

तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।३८।

ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला

लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,

हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,

हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।३४।

कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,

पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी

बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,

रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी

किरण किरण में Hindi poetry जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,

भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,

उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,

चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *